गुजरात के 11 लाख नौजवानों को मेरा पत्र, नागरिकता का नवजीवन मुबारक

गुजरात के नौजवानों,


इस वक्त आप गुजरात के 11 लाख नौजवान एक नई कहानी लिख रहे हैं. इसी वक्त मैं आपको पत्र लिखना चाहता हूं. मैं आपसे बहुत दूर हूं लेकिन आपके बहुत करीब. मेरे पास किसी चोर उद्योगपति का दिया जहाज़ होता तो अभी आपके बीच पहुंच गया होता. गांधी जी कहते थे साधन की पवित्रता साध्य से ज़्यादा ज़रूरी है. हम सभी गांधी नहीं हो सकते मगर उनके बताए रास्ते पर थोड़ा थोड़ा चल सकते हैं. आपने अपने अनेक ट्विट में अपने आंदोलन को गांधीवादी कहा है, उम्मीद है हिंसा न होने के अलावा आप अपने नारों में भी शुचिता रखेंगे. आपने हिंसा नहीं की है. न ही किसी दल को बुलाया है. आगे भी जारी रखिए. आपकी लड़ाई सिर्फ आपकी मांग के लिए नहीं, आपके नवजीवन के लिए भी है. आप बदल रहे हैं. आप नागरिक होना चाहते हैं. आप नागरिक हो रहे हैं.


मैंने आपकी लड़ाई में एक निरंतरता और ज़िद देखी है. जब गुजरात सरकार ने 3000 बिन सचिवालय क्लर्क के पदों के लिए परीक्षा की प्रक्रिया के बीच में पात्रता बदल दी तो आप एकजुट होकर सड़कों पर आए. ट्विटर पर ट्रेंड कराया और सड़कों पर अपनी संख्या दिखाई. सरकार झुक गई. 12 वीं पास की पात्रता बहाल हुई. 17 नवंबर को परीक्षा हुई तो चोरी और धांधली की ख़बरों ने आपको फिर से बेचैन कर दिया. आप सारे सबूत लेकर सरकार के पास पहुंच गए. सरकार सोती रही. आप 4 दिसंबर को बड़ी संख्या में पहुंच गए. उस दिन 2 लाख से अधिक ट्विट किया मगर नेशनल मीडिया में किसी को फर्क नहीं पड़ा. इसिलए कि आपको मीडिया में एक वोट के रूप में देखा जाता है. एक ऐसा मतदाता जिसके पास धर्म है. धार्मिक पहचान है. मगर मुद्दा नहीं है. नागरिक अधिकार नहीं है. साफ साफ कहूं कि आप नेता के द्वारा एक तरफ हांक दिए जाने वाले भेड़ों की तरह देखे जाते हैं. इसलिए दिल्ली का पत्रकार आपके आंदोलन में लोकतंत्र की जैविकता नहीं देख पाते हैं. मगर आप धुन के पक्के निकले. रात भर सचिवालय के बाहर डटे रहे. मोबाइल फोन के फ्लैश और अपने नारों की आवाज़ से अंधेरे को चीरते रहे.